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Satyarth Prakash (Sthulakshri Sanskaran) सत्यार्थ प्रकाश (स्थूलाक्षरी संस्करण)

550.00

गागर में सागर अर्थात् विश्वधर्मकोष

महर्षि दयानन्द के सभी ग्रन्थों में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है। इसमें उनके सब ग्रन्थों का सारांश आ जाता है। महर्षि ने इस ग्रन्थ की रचना सत्य अर्थ के प्रकाश के लिए ही की थी, अतएव उन्होंने इसका अन्वर्थ नाम (सत्यार्थप्रकाश ) रखा । जिन्होंने इस ग्रन्थ का गहराई से अध्ययन किया है, उन्हें विदित है कि इसमें कुल ३७७ ग्रन्थों का हवाला है, जिसमें २९० पुस्तकों के प्रमाण दिये गये हैं। इस ग्रन्थ में १५४२ वेद-मन्त्रों या श्लोकों का उदाहरण दिया गया है, और सम्पूर्ण प्रमाणों की संख्या १८८६ है । इस ग्रन्थ के लेखक का स्वाध्याय कितना विस्तृत था इसका अनुमान उनके इस कथन से लगाया जा सकता है कि वे ऋग्वेद से लेकर पूर्व मीमांसा पर्यन्त ३००० ग्रन्थों को प्रामाणिक मानते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य भाषाओं के ग्रन्थ तथा अप्रामाणिक पुस्तकें, जो उन्होंने पढ़ीं या सुनीं, इससे पृथक् हैं।

सत्यार्थप्रकाश में उपर्युक्त ग्रन्थों का उद्धरण ही नहीं उनके रेफरेन्स भी दिये गये हैं। किस ग्रन्थ में कौन सा मन्त्र या श्लोक या वाक्य कहां है ? उसकी संख्या क्या है ? यह सब कुछ इस साढ़े तीन महीने में लिखे ग्रन्थ में मिलता है । सत्यार्थप्रकाश एक मौलिक विचारों का ग्रन्थ है । ऐसा ग्रन्थ कि जिसने समाज को एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिला दिया। जिन अन्य ग्रन्थों ने संसार को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे हैं ।

महर्षि दयानन्द और सत्यार्थप्रकाश ने सामाजिक क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रान्ति की है । सत्यार्थ – प्रकाश ऐसे चुने हुए क्रान्तिकारी विचारों का खजाना है। ऐसे विचार जिन्हें उस युग में कोई सोच भी नहीं सकता था। समाज की रचना जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर होनी चाहिये। सत्यार्थप्रकाश का यही एक विचार इतना क्रान्तिकारी है कि इसके क्रिया में आने से हमारी ९० प्रतिशत समस्याएँ हल हो जाती हैं। ऐसे संगठन में जन्म से न कोई नीचा, न कोई ऊंचा, न कोई जन्म से गरीब, न कोई अमीर, जो कुछ हो कर्म से हो, ऐसी स्थिति में कौन सी ऐसी समस्या है जो इस सूत्र से हल नहीं हो जाती ।

सत्यार्थप्रकाश की सब से बड़ी विशेषता है – धर्म के वास्तविक स्वरूप का उद्घाटन | कोई उनके विचारों से सहमत हो या न हो किन्तु जो भी इस पुस्तक को पढ़ेगा, वह उनकी विश्लेषण क्षमता और विद्या की गम्भीरता की प्रशंसा किए विना नहीं रह सकता। इस ग्रन्थ का मूल उद्देश्य यह था कि प्राचीन वैदिक सभ्यता के आधार पर जो (जड़ें आई हैं, उन्हें काट छांट कर) भारतीय जन-जीवन के पुनर्निर्माण के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाए ।

अपनी इन विशेषताओं के कारण ही यह ग्रन्थ- रत्न संसार की चर्चित ( प्रसिद्ध) पुस्तकों में से एक है। ( सत्यार्थप्रकाश) से सम्बन्धित साहित्य का भण्डार भी व्यापक तथा विशाल है । इसके खण्डन तथा मण्डन में विभिन्न धर्मावलम्बियों तथा विद्वानों द्वारा सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गए हैं, आज भी लिखे जा रहे हैं, और भविष्य में भी लिखे जायेंगे। पिछले सौ वर्षों में संसार के सभी मतमतान्तरों के ग्रन्थों में जितना भी शोधन तथा पुनर्व्याख्या का कार्य हुआ है उन सब से सत्यार्थ – प्रकाश का विश्वव्यापी प्रभाव परिलक्षित होता है ।

(In Stock)

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गागर में सागर अर्थात् विश्वधर्मकोष

महर्षि दयानन्द के सभी ग्रन्थों में सत्यार्थप्रकाश प्रधान ग्रन्थ है। इसमें उनके सब ग्रन्थों का सारांश आ जाता है। महर्षि ने इस ग्रन्थ की रचना सत्य अर्थ के प्रकाश के लिए ही की थी, अतएव उन्होंने इसका अन्वर्थ नाम (सत्यार्थप्रकाश ) रखा । जिन्होंने इस ग्रन्थ का गहराई से अध्ययन किया है, उन्हें विदित है कि इसमें कुल ३७७ ग्रन्थों का हवाला है, जिसमें २९० पुस्तकों के प्रमाण दिये गये हैं। इस ग्रन्थ में १५४२ वेद-मन्त्रों या श्लोकों का उदाहरण दिया गया है, और सम्पूर्ण प्रमाणों की संख्या १८८६ है । इस ग्रन्थ के लेखक का स्वाध्याय कितना विस्तृत था इसका अनुमान उनके इस कथन से लगाया जा सकता है कि वे ऋग्वेद से लेकर पूर्व मीमांसा पर्यन्त ३००० ग्रन्थों को प्रामाणिक मानते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य भाषाओं के ग्रन्थ तथा अप्रामाणिक पुस्तकें, जो उन्होंने पढ़ीं या सुनीं, इससे पृथक् हैं।

सत्यार्थप्रकाश में उपर्युक्त ग्रन्थों का उद्धरण ही नहीं उनके रेफरेन्स भी दिये गये हैं। किस ग्रन्थ में कौन सा मन्त्र या श्लोक या वाक्य कहां है ? उसकी संख्या क्या है ? यह सब कुछ इस साढ़े तीन महीने में लिखे ग्रन्थ में मिलता है । सत्यार्थप्रकाश एक मौलिक विचारों का ग्रन्थ है । ऐसा ग्रन्थ कि जिसने समाज को एक सिरे से दूसरे सिरे तक हिला दिया। जिन अन्य ग्रन्थों ने संसार को झकझोरा है उनके निर्माण में सालों लगे हैं ।

महर्षि दयानन्द और सत्यार्थप्रकाश ने सामाजिक क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रान्ति की है । सत्यार्थ – प्रकाश ऐसे चुने हुए क्रान्तिकारी विचारों का खजाना है। ऐसे विचार जिन्हें उस युग में कोई सोच भी नहीं सकता था। समाज की रचना जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर होनी चाहिये। सत्यार्थप्रकाश का यही एक विचार इतना क्रान्तिकारी है कि इसके क्रिया में आने से हमारी ९० प्रतिशत समस्याएँ हल हो जाती हैं। ऐसे संगठन में जन्म से न कोई नीचा, न कोई ऊंचा, न कोई जन्म से गरीब, न कोई अमीर, जो कुछ हो कर्म से हो, ऐसी स्थिति में कौन सी ऐसी समस्या है जो इस सूत्र से हल नहीं हो जाती ।

सत्यार्थप्रकाश की सब से बड़ी विशेषता है – धर्म के वास्तविक स्वरूप का उद्घाटन | कोई उनके विचारों से सहमत हो या न हो किन्तु जो भी इस पुस्तक को पढ़ेगा, वह उनकी विश्लेषण क्षमता और विद्या की गम्भीरता की प्रशंसा किए विना नहीं रह सकता। इस ग्रन्थ का मूल उद्देश्य यह था कि प्राचीन वैदिक सभ्यता के आधार पर जो (जड़ें आई हैं, उन्हें काट छांट कर) भारतीय जन-जीवन के पुनर्निर्माण के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया जाए ।

अपनी इन विशेषताओं के कारण ही यह ग्रन्थ- रत्न संसार की चर्चित ( प्रसिद्ध) पुस्तकों में से एक है। ( सत्यार्थप्रकाश) से सम्बन्धित साहित्य का भण्डार भी व्यापक तथा विशाल है । इसके खण्डन तथा मण्डन में विभिन्न धर्मावलम्बियों तथा विद्वानों द्वारा सैकड़ों ग्रन्थ लिखे गए हैं, आज भी लिखे जा रहे हैं, और भविष्य में भी लिखे जायेंगे। पिछले सौ वर्षों में संसार के सभी मतमतान्तरों के ग्रन्थों में जितना भी शोधन तथा पुनर्व्याख्या का कार्य हुआ है उन सब से सत्यार्थ – प्रकाश का विश्वव्यापी प्रभाव परिलक्षित होता है ।

Weight 2000 g
Dimensions 29 × 23 × 5 cm

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